Mar 14 2022

The Chariot story The Mind is driver but Soul is the rider

Do not Let weakness of mind bring pain to your soul.  I am not  the Body or this Body is mine. All the pain, misery or diseseases are limited to my body only and can not touch my soul at all. I am not the mind , this mind is mine. If I am neither the body or mind then who am I ?? Am I the 5 sesnses which help me understand touch, see, hear, feel and experience pleasure or am I nothing but a wave of thoughts, ideas which are the cause of every action in my life. 

When I closely oberved the activeness of senses , I realised I am not even the senses. These senses are nothing but a bridge between me and the outside world which make me experience the materialistic external world. Then , when I deeply analysed my ideas and thoughts, I relaised I am not even that , yes I am not thoughts infact these thoughts are mine. Same time  I also realised that I am not intellect or traditions, these are all mine. 

So now this question started puzzling me even more – WHO AM I ?? If I am not Body or Senses or Mind or Thoughts then How do I find out Who AM I ? and where do I find who am I ? and then the quest itself led me to the core question Who is controlling my mind, my senses, my body, my thoughts , my traditions ?? Who is effecting my life and why am I suffering or enjoying events of my life. Who is it ?? The one who is giving signals to my mind or body to act in a particular manner, hmmm so now I got the answer it is an invisible energy which is controlling everything and guiding my mind, body or senses. 

So am I Energy, which can neither be created nor be destroyed, our ancient scriptures do talk about it in detail and do tell us that we are nothing but Energy, energy which just changes form but can not be dstroyed or created. So I am the Life Energy  and this life energy is linked dirtectly to the Eternal Source of Energy , the supreme energy of God, the divine source of Energy which drives and is directly connected to any and every energy giving and taking lifes, nurturing universe into celestial bodies and making or breaking stars. It is also true that while a constant conection with God or the supreme source of energy would have meant a blissfull life, we all do experience pain, we all suffer and the reason is that we experience loss of connection with the supreme divine energy at times and that is the sole cause of all sufferings.

Why do we expereince a loss of connection? We will expamine this in the next blog but for now lets understand and accept that our body is nothing but a chariot, and the five senses are nothing but the five horses pulling this chariot whereas the moind and body are drivers of this chariot however the Soul or Life Energy is a rider who is riding on this chariot with the help of driver to just travel from one destination to another and it keeps changing the chariot between these destinations unless it reaches the Final Destination.

-Advait




आत्मा यात्री और मन सारथी, जीवन यात्रा में मन की मर्जी को मजबूरी मत बनने दीजिए

मैं शरीर नहीं हूं, ये शरीर मेरा है। कष्ट, दुख और बीमारी मुझे नहीं बल्कि मेरे शरीर को है। मैं मन नहीं हूं, ये मन मेरा मेरा है। आखिर जब मैं शरीर और मन नहीं हूं तो मैं हूं कौन? क्या मैं 5 इंद्रियां हूं जो मुझे शब्द, स्पर्श, रूप, रस और गंध की अनुभूति करा रही है? या फिर सोच हूं या विचारों का बवंडर हूं जो मेरे जीवन की हर घटना का कारण है।

जब मैंने पांचों इंद्रियों की चंचलता और चपलता देखी तो ये अहसास हुआ कि मैं इंद्रियां भी नहीं हूं। इंद्रियां तो मुझे भौतिक दुनिया की सहज अनुभूति कराने का साधन मात्र है। फिर विचारों के अनवरत सैलाब में झांक कर देखा ये अहसास हुआ कि मैं विचार भी नहीं हूं, ये विचार मेरे हैं। इस दौरान ये पता चला कि मैं बुद्धि और संस्कार भी नहीं हूं, ये सब मेरे हैं। इसके बाद फिर से मेरे मन में ये सवाल शोर मचाने लगा कि आखिर मैं हूं कौन? जब मैं शरीर नहीं हूं, सोच नहीं हूं, मन नहीं हूं और इंद्रियां भी नहीं हूं तो मैं खुद को कहां खोजूं? फिर अचानक ही एक सवाल में अटक गया कि आखिर वो कौन है जो मेरे शरीर, सोच, मन, बुद्धि, संस्कार और इंद्रियों को निर्देशित या संचालित कर रहा है? वो कौन है जिसकी मर्जी से मेरे जीवन में सबकुछ घटित हो रहा है? वो कौन है जो मेरे शरीर और सोच को सिग्नल दे रहा है और इस सिग्नल का कनेक्शन कहां से जुड़ा है? फिर अंदर से जवाब मिला कि कोई अदृश्य ऊर्जा है जो हाड़-मांस के इस शरीर को संचालित कर रही है। तो क्या मैं ऊर्जा हूं? ऊर्जा जो एक बार पैदा होती है तो कभी नष्ट नहीं होती, ऊर्जा जो सिर्फ स्वरूप बदलती है। सनातन शास्त्रों में आत्मा के बारे में भी कुछ ऐसा ही बताया गया है। फिर धीरे-धीरे आत्मनुभूति होने लगी कि मैं ऊर्जा हूं जो जीव शरीर में जीवात्मा भी कही जाती है। जीवात्मा का कनेक्शन परमात्मा से है जो परम और दिव्य ऊर्जा स्रोत है। परमात्मा जो स्वयं प्रकाशित है और खुद से कनेक्ट सभी जीवात्माओं को प्रकाशित कर रहा है। जीव शरीर को संचालित करने वाली ऊर्जा में  असहजता या गतिरोध आने पर परम ऊर्जा से इसका कनेक्शन या तो बाधित हो जाता है या फिर टूट जाता है। अब सवाल ये कि जीव शरीर को चलाने वाली ऊर्जा में विकार या अवरोध आता क्यों है? इसका जवाब दूसरे ब्लॉग में तलाशलेंगे। अब तक ये स्पष्ट हो चुका है कि मैं अदृश्य ऊर्जा हूं जो अनंत की सत्ता से  संचालित हो रही है। मैं जीवात्मा हूं जो परमात्मा की पवित्रता से प्रकाशित है। ये सब कुछ इस प्रकार है कि मानो आपका शरीर एक रथ है और आपकी 5 इंद्रियां इस रथ को खींचने वाले 5 घोड़े हैं। मन और बुद्धि शरीर रूपी इस रथ के सारथी हैं। जीवात्मा तो सिर्फ इस रथ का रथी यानी यात्री है, जो एक पड़ाव से दूसरे तक जाने के लिए रथ यानी शरीर बदलता रहता है।

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