Mar 14 2022

Purity is Worship Higher Purification Stronger Connections

Is going to a place of worship like temple, church or mosque the only way to worship, is pilgrimage or attending prayer meetings only way to worship? Is lighting candles, lighting scented sticks –worship?

These questions are linked deeply to our way of devotion, to our traditions and strongly imbibed in the respective cultures as well. We are all so busy that we do not try to find truth behind what we do and why we do it, as these activities do help you to worship but worship is incomplete till we understand the philosophy of worship.

Actually in our ancient sciptures Work is called to be Worship , and that’s true as well, but then we need to think does work only qualify to be related to worship or is it only “good work”, even bigger questions is do all good work/ deed can be treated as worship, or there are further categories within that ?? It has been seen so many times that people who donate or distribute so many things like clothes, food etc also show a very inconsistent behaviour, they cause pain by abusing some other people directly or indirectly and live a life full of arrogance. Will good deed or work  of these people also qualify to be called worship ? Does it hence require us to further understand good work minutely?

Actually, the truth is that any Good work or good deed accomplished with good intention is true worship. One more thing is whatever you are doing , make sure you do it knowingly and not unknowingly. So whatever you do , you shall do it with utmost attention, commitment , confidence and selflessly . Do it for welfare of mankind and for enjoying life. If you do it like this trust me all that you do , any work that you do , any task that you accomplish will qualify to be worship. As your purity will keep increasing , you will also realise that the strength of your connection with the divine supreme energy is also growing. With such pure thoughts  whatever you dream of, shall be yours effortlessly.

-Advait




पवित्रता ही पूजा है, शुद्धता ही शक्ति है

क्या मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे और गिरिजाघर में परमात्मा के साथ मीटिंग करना पूजा है? क्या तीर्थस्थल या प्रेयर हाॅल में अराध्य की आराधना को पूजा कहते है? क्या कर्मकांड से परमात्मा प्रसन्न हो जाते हैं? क्या अराध्य को धूप, अगरबत्ती दिखाना या उनका श्रृंगार करना ही पूजा है?

ये कुछ ऐसे सवाल हैं जो हमारे धार्मिक निष्ठा, धारणा और भाव प्रबलता से जुड़े हुए हैं। इंसान परिस्थितियों और पद्धतियों में इतना उलझा हुआ है कि वो इन सवालों में छुपे सच की परतों को पलटने का वक्त ही नहीं निकाल पाता।

दरअसल, सनातन विज्ञान की परिष्कृत परिभाषा में कर्म को ही पूजा कहा गया है और ये सच भी है। लेकिन हमें सोचना होगा कि क्या हमारा हर कर्म पूजा की श्रेणी में आता है या फिर सिर्फ शुभ कर्म ही पूजा कहलाने की योग्यता रखता है। सवाल ये भी है कि क्या सभी शुभ कर्म पूजा की श्रेणी में आते हैं या फिर इसमें भी कुछ कैटेगरी है? कई बार गरीबों में भोजन बांटने, पशु-पक्षियों के लिए चारे और दाने का इंतजाम करने वाले लोग भी अपने व्यवहार और बर्ताव में असहज होते हैं। वो दूसरों के लिए अपशब्द बोलते हैं और अहंकार के साथ जीते हैं। क्या ऐसे लोगों का किया काम शुभ कर्म कहलाएगा? इसलिए शुभ कर्म को भी बारीकी से समझने की जरूरत है।

सच तो ये है कि शुद्ध भाव से किया गया शुभ कर्म ही सच्ची पूजा है। मैं तो कहता हूं कि निर्मल मन, निश्चल सोच और शुद्ध भावना से किया गया हर कर्म पूजा है। हां, एक और बात जो ध्यान रखना बहुत जरूरी है कि आप जो भी कार्य कर रहे हैं, उसे पूरे होशोहवास में कीजिए, अनजाने में कुछ भी मत कीजिए। आप जो भी कीजिए लक्ष्य, उदेश्य, विचार और विश्वास के साथ कीजिए। मानवता के कल्याण और जीवन के आनंद के लिए कीजिए। यकीन मानिए आपका हर कर्म पूजा की श्रेणी में आ जाएगा। आपके अंदर जितनी प्योरिटी आएगी, परमात्मा से आपका कनेक्शन उतना ही स्ट्रांग होता चला जाएगा। प्योरिटी के साथ आप जो सोचेंगे और जितना चाहेंगे, आपके लिए सहज ही उपलब्ध हो जाएगा।

-अद्वैत

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